कोरी किताब।
मैं हूँ एक कोरी किताब।
जो लिखे थे पहले शब्द।
अब वह धुंधले पड़ चुके हैं।
लिखे ना लिखे के बराबर है।
क्योंकि वह पन्ने पुराने हो गये है।
मैं अपनी किताब में।
नये पन्नो का संकलन करूँगी।
जो मैं चाहूँ सिर्फ अबकी बार वही लिखुँगी।
पहले लिखी गई औरों के हाथ।
जो मर्जी लिखा।
फिर अपनी बेखुदी में।
मेरे पन्नों को फाड़ दिया।
रद्दी बन गये अब पन्ने।
जो लिखे थे कभी।
शब्द भी अधमिटे हो गये।
दिखता नहीं कोई उनका अर्थ।
नये मेरे सपने नयी मेरी उड़ान।
नयी मेरी दासता ।
कोरे कागज पर छपेगा ।
मेरी आत्मा का सारांश।
नीलम गुप्ता 🌹🌹(नजरिया )🌹🌹
दिल्ली
Virendra Pratap Singh
23-May-2021 01:24 PM
बहुत अच्छा!
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